गर्मियों का मौसम शरीर की पाचन अग्नि को कमजोर कर देता है और साथ ही पसीना अधिक निकलने के कारण शरीर में जल की कमी (डिहाइड्रेशन) भी हो जाती है। आयुर्वेद के अनुसार, इस समय पित्त दोष प्रबल हो जाता है, जिससे शरीर में गर्मी बढ़ती है और कई समस्याएँ हो सकती हैं जैसे – पेट की जलन, त्वचा पर रैशेज़, थकान, उल्टी या एसिडिटी। इसलिए, ज़रूरी है कि हम अपने आहार और जीवनशैली को मौसम के अनुसार ढालें।
गर्मियों में क्या खाएं?
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पानी से भरपूर और ठंडक देने वाले फल–सब्जियाँ:
- खीरा, तरबूज, खरबूज, लौकी, तोरई, परवल
- नींबू पानी, बेल शरबत, आम पन्ना
- नारियल पानी और छाछ
ये शरीर को हाइड्रेट करते हैं और पित्त दोष को संतुलित रखते हैं।
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ठंडे प्रभाव वाले प्राकृतिक पेय:
- गाय का ताजा दूध (गुनगुना या थोड़ा ठंडा)
- मुनक्का भिगोकर पानी
- गुलकंद मिलाया दूध या शीतल पेय
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हल्का सुपाच्य आहार:
- मूंग की खिचड़ी, पतली दालें
- गेहूं या जौ से बने हल्के रोटी/फुले हुए पराठे
- सादी सब्जियाँ जैसे लौकी, तोरई, भिंडी
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स्वादानुसार:
- सौंफ, धनिया, जीरा, पुदीना जैसे ठंडक देने वाले मसाले
- गुड़ की जगह मिश्री का उपयोग
गर्मियों में क्या नहीं खाएं?
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बहुत तला–भुना और मसालेदार भोजन:
इससे पेट में जलन, एसिडिटी और पित्त की वृद्धि होती है।
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भारी, गरिष्ठ आहार:
- बहुत ज्यादा प्रोटीन युक्त, मांसाहारी या चिकनाई से भरा खाना
- मलाईदार मिठाइयाँ या डीप फ्राइड स्नैक्स
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ठंडी चीज़ें लेकिन अत्यधिक मात्रा में नहीं:
- बहुत ठंडा पानी, बर्फ वाले शरबत या कोल्ड ड्रिंक्स – पाचन शक्ति को कमजोर करते हैं।
- फ्रीज़ में रखा खाना, पुराना या बासी भोजन
गर्मियों में जीवनशैली के सुझाव
- दोपहर में सीधा धूप से बचें
- हल्के रंग और सूती कपड़े पहनें
- दोपहर में थोड़ी देर विश्राम करें (अनुलोम-विलोम, शीतली प्राणायाम उपयोगी हैं)
- नहाने में गुलाब जल या चंदन मिलाया जा सकता है, जिससे ठंडक मिलती है
आयुर्वेद क्या कहता है?
गर्मियों में शरीर की अग्नि मंद हो जाती है और पित्त प्रकृति के लोग ज़्यादा प्रभावित होते हैं। इसलिए आहार ऐसा हो जो शीतल, सुपाच्य, जलवर्धक और पित्तशामक हो।
गर्मी के मौसम में खानपान में थोड़ी सतर्कता और आयुर्वेदिक दिनचर्या अपनाकर हम न केवल बीमारियों से बच सकते हैं, बल्कि ऊर्जा और ताजगी से भरपूर रह सकते हैं। अधिक जानकारी या परामर्श के लिए संपर्क करें: +91 9860007992